Ramcharitmanas Ayodhya Kand Chaupai: जीवन में सुख-समृद्धि बनी रही और धन का अभाव न रहे ऐसी इच्छा हर व्यक्ति की होती है. लेकिन इसके बावजूद भी घर पर दरिद्रता छा जाती है और तंगहाली का सामना करना पडता है. इसके कई कारण हो सकते हैं.

वास्तु शास्त्र की मानें तो, जिन घरों में गंदगी रहती है, साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता, स्त्री दुखी रहती है और सूर्योदय के बाद घर की सफाई की जाती है वहां मां लक्ष्मी का वास नहीं होता है. वहीं ज्योतिष शास्त्र में घर की दरिद्रता का कारण ग्रह-नक्षत्रों को भी माना जाता है.

ग्रह दोष तो नहीं घर की दरिद्रता का कारण

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  • ज्योतिष के अनुसार, जब किसी जातक के जन्मकुंडली में तीनों शुभ कारक ग्रह लग्‍नेश, पंचमेश, नवमेश पीडि़त या कमजोर स्‍थिति में होते हैं तो इससे दरिद्रता योग बनता है.
  • जब धनभाव में कालसर्प योग बने और अन्‍य ग्रहों की स्‍थिति कमजोर हो तो भी ऐसी स्थिति में तंगहाली का सामना करना पड़ता है.
  • जब सूर्य ग्रह और चंद्रमा परम नीच में हों और नीचभंग ना हो. तब भी दरिद्रता का कारण बनता है.
  • पाप ग्रहों के धनभाव में नीच राशि में बैठने से भी घर पर दरिद्रता रहती है.

इस उपाय से दूर होगी घर की दरिद्रता

गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचयित श्रीरामचरितमानस के अयोध्या कांड के शुरू में राम-सीता के विवाह से जुड़ी 8 चौपाई है. इन 8 चौपाईयों का श्रद्धापूर्वक प्रतिदिन पाठ करने से घर की तंगहाली और दरिद्रता दूर हो जाती है.

दरिद्रता दूर करने के लिए अयोध्या कांड की 8 चौपाई

दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।

चौपाई 1
जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए।।
भुवन चारिदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषहि सुख बारी।।

चौपाई 2
रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई। उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई।।
मनिगन पुर नर नारि सुजाती। सुचि अमोल सुंदर सब भाँती।।

चौपाई 3
कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। जनु एतनिअ बिरंचि करतूती।।
सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी।।

चौपाई 4
मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली।।
राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ। प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ।।

दोहा
सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु।
आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु।।

चौपाई 5
एक समय सब सहित समाजा। राजसभाँ रघुराजु बिराजा।।
सकल सुकृत मूरति नरनाहू। राम सुजसु सुनि अतिहि उछाहू।।

चौपाई 6
नृप सब रहहिं कृपा अभिलाषें। लोकप करहिं प्रीति रुख राखें।।
वन तीनि काल जग माहीं। भूरिभाग दसरथ सम नाहीं।।

चौपाई 7
मंगलमूल रामु सुत जासू। जो कछु कहिअ थोर सबु तासू।।
रायँ सुभायँ मुकुरु कर लीन्हा। बदनु बिलोकि मुकुटु सम कीन्हा।।

चौपाई 8
श्रवन समीप भए सित केसा। मनहुँ जरठपनु अस उपदेसा।।
नृप जुबराजु राम कहुँ देहू। जीवन जनम लाहु किन लेहू।।

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