इस शोध में 1990 से लेकर 2020 तक के समय काल में पांच से 19 साल तक की उम्र के बच्चों पर अध्ययन किया है और गांव और शहर के बच्चों को अलग अलग शारीरिक विकास का खाका तैयार किया जिसे बाद में बीएमआई के आधार पर चेक किया गया. इस शोध को इंपीरियल कॉलेज लंदन की साइंटिफिक मैगजीन नेचर में प्रकाशित किया गया है. शोध के निष्कर्ष में कहा गया है कि पिछले दो दशकों में ग्रामीण क्षेत्रों में विकास भले ही कम हुआ है लेकिन कुपोषण में कमी आई है.
शहर में रहने वाले बच्चों की अपेक्षा गांव में ज्यादा पोषण
पिछले 20 सालों में शहरी बच्चों की अपेक्षा ग्रामीण इलाकों के बच्चों की औसत लंबाई करीब चार सेंटीमीटर ज्यादा बढ़ी है. इतना ही नहीं नब्बे के दशक के बच्चों के बीएमआई स्तर की तुलना की जाए, तब ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बच्चों का बीएमआई शहरी बच्चों की अपेक्षा में कम था. लेकिन बाद में सालों में ये उलट गया और अब ये अंतर बहुत ही मामूली रह गया है. आपको बता दें कि जहां उन शहरी इलाकों की बात हो रही है जो शहरी इलाकों में होते हुए भी मलिन बस्तियों के स्तर के होते हैं. यहां खुले में शौच, गंदगी, बेरोजगारी और प्रदूषण बहुत ज्यादा होता है, इसके मुकाबले गांव के बच्चे ज्यादा स्वस्थ कहे जाते हैं, क्योंकि वहां पोषण की कमी नहीं और प्रदूषण भी इन मलिन बस्तियों की अपेक्षा कम है.
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