अलीगढ़ में तालों के बनने का इतिहास करीब 130 साल पहले शुरू हुआ था, जब जॉनसंस एंड कंपनी ने यहां से ताले बनाने की शुरुआत की थी. यह ताले इंग्लैंड से इम्पोर्ट कर अलीगढ़ में बेचे जाते हैं. यह कंपनी तालों के साथ-साथ पीतल की कलाकृतियां भी बनाती है. आज अलीगढ़ में ताला बनाने वाली करीब 5 हजार कंपनियां काम करती हैं. जिसमें लाखों लोग काम कर रहे हैं. जिससे रोजगार भी बढ़ रहा है. यही वजह है कि अलीगढ़ को ‘ताला नगरी’ के नाम से भी जाना जाता है.
आपको पता ही होगा कि तालों का प्रयोग घरों के दरवाजे, कीमती वस्तुओं को सुरक्षित रखने के लिए लगाया जाता है. ताकि कोई कीमती सामान कोई भी व्यक्ति चुरा ना सके. अलीगढ़ एक ऐसा जिला हैं. जहां हिन्दू और मुसलमान एक साथ मिलकर तालों का कारोबार करते हैं. साथ मिल जुलकर काम करने के कारण ही ताला उद्योग का अलीगढ़ में कुटीर उद्योग ज्यादा है.



एक ताला को बनाने के लिए करीब 500 लोगों की लगती है मदद
अलीगढ़ के ताले का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में एक ही बात आती है कि ये सबसे मजबूत ताले हैं. अब बताते हैं आपको कि ये ताले बनते कैसे हैं. ताला बनाने के लिए इसे करीब 90 तरह के प्रोसेस से गुजरना पड़ता है. इसमें करीब 200 से ज्यादा कारीगर अलग-अलग प्रक्रिया में ताले पर हाथ आजमाते हैं. इसके बाद ताले के छोटे-छोटे पार्ट्स को असेम्बल किया जाता है. एक ताला को बनाने के लिए करीब 500 लोगों की मदद लगती है.
अगर बात सिर्फ अलीगढ़ की करें, तो साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, अलीगढ़ की जनसंख्या 36,73,889 है. इसमें पुरुषों की संख्या लगभग 19,51,996 है. वहीं महिलाओं की जनसंख्या 17,21,893 है. इनमें हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों की आबादी 4 लाख के करीब है जबकि मुस्लिम धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या लगभग 3 लाख है. इसके साथ ही ईसाई और सिख धर्म को मानने वाले लोगों की आबादी 3 से 4 हजार के बीच है.